Friday, May 8, 2009

आईना

आईने बहुत है हज़ार ज़िन्दगी मैं
दीवारों की कमी नही
पैमाने लाखो हैं ज़िन्दगी मैं
दीवानों की कमी नहीं
कभी हँसी का परदा
छुपा लेता है अकेलेपन को
कभी खामोश चेहरा समां जाता हैं चकाचौंध मैं
धीरे से कोई ख्वाब
बस जाए उस दिल मैं दुआ है मेरी
धीरे से वो नूर लौट आए
इल्तिजा है मेरी
कितनी बेत्कलुफ़ है ज़िन्दगी
की संगदिल से ही होती है
दिल्लगी बार बार
और आलम तो देखो की फिर यह
गलती जानबूझकर करना चाहता है यह दिल
चाँद की रौशनी जन्म लेती है सूरज से
पर इंसान कहा से लाये अपने पास अपने नूर को
छुपा है वो उसके अन्दर ही कही
बस पहचान कर खोजने की देरी है
खुबसूरत होगा वो आईना जो बता दे
कहा है वो नूर छुपा
आईने बहुत है हज़ार
बस आईना खोजने की देरी है
पैमाने लाखो है जिंदगी मैं
बस निगाह चाहिए खोजने की


पीयूष चंदा

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