Tuesday, April 28, 2009

मंजिले और भी है ख्वाहिशे है हजारों

आज है हम यहाँ कल हम जायेंगे कहाँ

छूने निकले थे आसमा है विश्वास था होगा हमारा सारा जहाँ

न जाने कल हम होंगे कंहा

जहाँ ले जायेंगे हमे किस्मत के रास्ते

वो पहुचेंगे अपनी मंजिल जो चलेंगे दिल के वास्ते

मंजिले और भी है ख्वाहिशे है हजारों

अपनी जिंदगी है अपने हाथ है दोस्तों

चाहे बिगाडो चाहे सवारों

दौड़ है खो न जाना कहीं

याद रखना क्या है ग़लत और क्या है सहीं

दूर पास की आस न रखना

अपनी खुशियों को अपने पास न रखना

फैलाते रहों खुशिया हज़ार जिंदगी मैं लाओं बहार

साहिल पर पहुचकर सागर की गहाराई नाप ली जाती है

सहर पर आकर निशा की लम्बाई जांच ली जाती है

कायनात के है हजारों आयाम

आंसा नहीं है इन की सत्यता समझना

पर कोशिश जारी रखना ही

होना चाहिए इंसान का अंतिम ध्येय

कभी खोना नहीं अपने पर विशवास

गर मिल भी न सके मंजिल तो कोई गम नहीं

मंजिलें और भी है खाव्हिशे है हजारों

पीयूष चंदा

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