विस्तृत है यह संसार
पर परिसीमित की अभिलाषा है
आवेेग है बहुतेर
परन्तु उसको संचित
करने की अभिलाषा है
मानव मस्तिष्क की कल्पना
का क्या कहना
जो है उसे छोड़कर अनुराग की कल्पना है
निर्दिष्ट हो चुका है वो संयोग
परन्तु संदेह है अतुलनीय
यह समर्पित प्रेम है
या निर्जीव संवेदना मैं आदर की परिकल्पना
भाव अनेक मनुष्य अनेक
पर सब भावो का एक ही निचोड़
कुछ पाने की आस है
कुछ मिलने की आकांक्षा है
वो मिल जाए तो जीवन रास मिल जाये
अन्यथा व्यर्थ है यह प्रेम
अनर्थ है ये जीवन
जरा दिलऐ नादान को सँभाल ऐ महजबीन
जो हैं वो तुझ मैं ही है
किसी और मैं नहीं
ये आकाश का विस्तार नहीं
तेरा नूर है जो
जिसमे खिल गया है सारा जहाँ
खुदा गवाह है
खुद से खुदी की पहचान कर
खुदा रहमदिल है
बस तू अपने ऊपर ऐहतराम कर
द्वारा
पीयूष चंदा
पर परिसीमित की अभिलाषा है
आवेेग है बहुतेर
परन्तु उसको संचित
करने की अभिलाषा है
मानव मस्तिष्क की कल्पना
का क्या कहना
जो है उसे छोड़कर अनुराग की कल्पना है
निर्दिष्ट हो चुका है वो संयोग
परन्तु संदेह है अतुलनीय
यह समर्पित प्रेम है
या निर्जीव संवेदना मैं आदर की परिकल्पना
भाव अनेक मनुष्य अनेक
पर सब भावो का एक ही निचोड़
कुछ पाने की आस है
कुछ मिलने की आकांक्षा है
वो मिल जाए तो जीवन रास मिल जाये
अन्यथा व्यर्थ है यह प्रेम
अनर्थ है ये जीवन
जरा दिलऐ नादान को सँभाल ऐ महजबीन
जो हैं वो तुझ मैं ही है
किसी और मैं नहीं
ये आकाश का विस्तार नहीं
तेरा नूर है जो
जिसमे खिल गया है सारा जहाँ
खुदा गवाह है
खुद से खुदी की पहचान कर
खुदा रहमदिल है
बस तू अपने ऊपर ऐहतराम कर
द्वारा
पीयूष चंदा
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