Sunday, November 29, 2009

खिडकिया

कुछ खुले अधखुले , कुछ पूरीअधूरी



कहानी कहती यह खिडकिया




कुछ सुने अनसुने , कुछ दिखे अनदिखे



राज़ खोलती यह खिडकिया



कभी ठंडी हवा के झोके कों साथ लाती खिडकिया



कभी सर्दी मे तेज धूप की बौछारकरती खिडकिया



कभी यह खिडकिया झरोखा बनती दुनिया देखने का



कभी यह खिडकिया बहाना बनती दुनिया से बचने का



कुछ सुलझे अनसुलझे सवालों को जन्म यह खिडकिया



कभी हँसी ठीटोली की हिलोर बनती खिडकिया


कभी टकराहट और झगडे के शोर का कारण बनती यह खिडकिया


कभी ख्वाबो को पंख लगाती यह खिडकिया


कभी उड़ते परिंदों के पर काटती यह खिडकिया



ज़माने की पूरी कहानी सुनाती यह खिडकिया


बंद झरोखे की दबी जबान मैं उनके मर्म को समझाती यह खिडकिया


यह खिडकिया समझाती है जीवन के रहस्य को


मानो तो एक खुली किताब है यह खिडकिया


और न मानो तो ये खाली खिडकिया ही तो है



और क्या.......!!!!!


पियूष चंदा







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